Friday, January 30, 2009

J.N.U. in my point of view_

ये जेएनयू है यहाँ की फजा सुहानी है
हर एक दिल पे यहाँ छाई शादमानी है
कहीं पपीहा तो बुलबुल कहीं चहकता है
घड़ी घड़ी तो यहाँ साज़ बजता रहता है
हर एक खूबी में अपना चमन निराला है
जभी तो इसका जहाँ भर मे बोल बाला है
ये ऐसा दरिया है जिसमें सदा रवानी है
क़दम क़दम पे यहाँ यारों कामरानी है
ये जेएनयू है यहाँ की फजा सुहानी है

ये गुलमोहर वो अमलतास की कतारें हैं
के जैसे सुबह-- बनारस में लालाजारें हैं
यहाँ पे छाई है शाम --अवध सी रंगीनी
हर एक लम्हा है मौसम मे एक नमकीनी
अभी है दुप, तो कब छाओं किस ने जानी है
यहाँ के लोगों की, क्या खूब जिंदगानी है
ये जेएनयू है यहाँ की फजा सुहानी है

बगैर वक्त के बादल यहाँ बरसते हैं
न जाने कितने मुक़द्दर यहाँ संवरते हैं
यहाँ पे देखो सभी रंग के हैं फूल खिले
ये कह रहे हैं , यहाँ पे तो दिल से दिल हैं मिले
कहीं गुलाब कहीं पे तो रातरानी है
ये रीत अपने चमन की बड़ी पुराणी है 
ये जेएनयू है यहाँ की फजा सुहानी है

यूँ दिलफरेब हैं दिलकश सभी नज़ारे हैं
के जैसे धुप की किरनें या माहपारे हैं
वो "गंगा ढाबे" पे हर शाम एक मेला है
हज़ार यादों का मरकज़ वो मजनू टीला है
कहीं अदा है अदा में तो लंतरानी है
हर एक पल में यहाँ इक नई कहानी है

क़दम क़दम पे यां दिलबर हैं, मनचले भी हैं
सुरूर, रक्स के आलम में रतजगे भी हैं
ज़रा सी धुन पे थिरकता है अंग अंग यहाँ
हज़ार रूप हैं बिखरे हज़ार रंग यहाँ
हरा है लाल, गुलाबी है जाफरानी है
खशी में डूबी अदाएँ हैं नौजवानी ही
ये जेएनयू है यहाँ की फजा सुहानी है

यहाँ तो अपने, पराये भी साथ रहते हैं
हमेशा पयार, मोहब्बत की बात करते हैं
ये अपनी धुन में हर इक सुबह-व- शाम रहते हैं
अँधेरी रात में तारों का काम करते हैं
जिधर भी जाए नज़र आम जौफशानी है
"वसी" ये हमपे तो कुदरत की मेहरबानी है
ये जेएनयू है यहाँ की फजा सुहानी है।

जेएनयू और दूसरी universities में अगर किसी हद तक यकसानियत है तो बहुत जियादा फर्क भी है. और वोह चीज़ जो जेएनयू को सब से मुमताज़ और अलग करती है वो है यहाँ का खुशगवार मौसम, पुरसुकून माहौल, खुशरंग फजा, दिलफरेब मंज़र , दिलकश नज़ारे..... ख़ुद जेएनयू एक ऐसी ;पुर्काशिश ,intelectual, और खुबसूरत हसीना है जिसने अपनी जुल्फों के फंदे में न जाने कितनों को बाँध रखा है. वरना तो आख़िर किया वजह है के विद्द्रोही (एक ओल्ड स्टुडेंट ) जैसे लोग एक उम्र गुजारने पर मजबूर हैं . जभी तो एक बार किसी ऑटो ड्राईवर ने विद्द्रोही से बहार जाने का रास्ता पूछा तो उनका जवाब था
" मैं भी 25 साल से वही तलाश कर रहा हूँ ". for more read my novel based on jnu, in both Urdu and Hindi languages.

 in Urdu and Hindi.

wasi bastavi
Email. wasijnu@gmail.com

Friday, January 9, 2009

Zindagi

वही है दर्द, वही दिल वही है, शम-ए- खेयाल
उसी का ज़िक्र मुसलसल है ज़िन्दगी मेरी
कभी है साज़, कभी सोज़, तो कभी नगमा
बदलती रंग ये हर पल है जिंदगी मेरी
वो अपने हुस्न को महसूस करगई शयेद
जभी तो शोख है ,चंचल है ज़िन्दगी मेरी
ज़रा सा पांव क्या रक्खा के फिर निकल न सके
ये ख्वाहिशात का दलदल है ज़िन्दगी मेरी
कुछ इसतरह से ये बहती रही पता न चला
हवा है, आब या , बादल है ज़िन्दगी मेरी
ये मेरे शेर, ये ग़ज़लें "वसी " उसी केलिए
उसी की आँख का काजल है ज़िन्दगी मेरी.

Thursday, January 8, 2009

my life in my poetry

अपने एहसास के शीशे में संवर लेता हूँ
मैंने तो ख़ुद को ही आईना बना रक्खा है .

मैं इक खुद्दार था मुट्ठी को अपनी बंद ही रक्खा
नहीं तो बारहा रिशवत मेरी मुट्ठी में आई थी.

मेरा दावा है मुझ से ए हवा तू हार जाऐगी
मैं यादों का दिया हूँ जलते रहना मेरी आदत है .


जुनूं में गिर के बिखरना ये मेरी फितरत है
मुझे ये ढंग सिमटने का यूं न सिखलाओ
चमक रहा हूँ तो उसकी वजह भी है मालूम
मैं आइना हूँ मुझे आइना न दिखलाओ.


मंजिल अभी करीब दिखी दिख के खो गई
हाँ जेएनयू में दिल का सफर एक कशमकश
आशिक की हसरतों में डुबी दिल की धड़कनें
माशूक की वो तिरछी नज़र एक कशमकश.

Monday, January 5, 2009

Sabarmati Hostel, JNU (farewell Poem)

साबरमती Hostel of J.N.U
के
बहुत ही सीनियर गार्ड
रना
जी की विदाई पर एक नज़्म-
"
राणा जी की याद में"


हर इक दिन कुछ घड़ी, कुछ पल हम उनके साथ रहते हैं
मुहब्बत से उन्हें हम लोग तो राणा जी कहते हैं
अगर देखें वह औरों से कई वजहों से बेहतर हैं
वोह मरदे नातवां साबरमती के गेट कीपर हैं
बस उन की इक हँसी पर सारे लड़के हंसने लगते हैं
कभी भी मूड में गपशप अगर वो करने लगते हैं
कभी वो शौक़ से किस्से जवानी के सुनाते हैं
बहुत ही फख्र से ख़ुद को वो इक फौजी बताते हैं
मेरा नेपाल घर है गर कोई पूछे तो कहते हैं
वह अक्सर बात में सा की जगह पर शा ही कहते हैं
जब उनके हाथ में देखा था तम्बाकू तो ऐ यारब
वो शरमा के ये बोले मुझसे और कहिये वशी शाहब
ज़रा शा आप भी ले लें अगर जो शौक़ रखते हैं
मुहब्बत से उन्हें हम लोग तो राणा जी कहते हैं
था उनका काम मजलूमों को हरदम हौसला देना
सभी लोगों को गर मुमकिन हो अच्छा मशवरा देना
खेलाफ़-ऐ-अक्ल बातों पे उन्हें गुस्सा भी आता है
ज़रा रह रह के यूँ पारा भी उनका चढ़ता जाता है
कोई हाकर अगर इक बार कहने से नहीं माना
तो वो गुस्से में कहते सुन लो मेरा नाम है राणा
कभी देखा अगर कुत्ता तो वो गुस्से में ये बोले
तेरी ऐशी की तैशी,रुक ज़रा..अब भी नहीं डोले !
सुबह हो शाम हो वोह जब तलक डयूटी पे रहते हैं
सभी कुत्ते हमेशा उनकी परछाईं से डरते हैं
खड़े बस दूर से ही दुम हिलाते तकते रहते हैं
मुहब्बत से उन्हें हम लोग तो राणा जी कहते हैं
हुआ इक हादसा तो सबने पूछा के वजह क्या है
वो बोले और क्या सुनियेगा अब बाकी बचा क्या है
लड़ाई रोकने को मैं इधर मौके पे जा पहुँचा
तो इक दूजा उधर से लड़कयों की विंग में आ पहुँचा
वोह घुस कर रूम में इक बेड के नीचे छुप गया ऐसे
के जैसे सांप हो बोरी के नीचे घुस गया जैसे
कोई बनता है शैदाई कोई बनता है दिलवाला
इन्हीं लोगों ने तो जीना मेरा मुश्किल है कर डाला
हजारों लोग आते हैं कई काले कई गोरे
बहुत ही तंग करते हैं ये हमको नौजवां छोरे
खुदा जाने ये पढ़ते भी हैं या बस यूँ ही फिरते हैं
मुहब्बत से उन्हें हम लोग तो राणा जी कहते हैं

Wasi Bastavi

नये साल का वादा



हर तरफ़ पयार की शम्मा को जलाना होगा
मादर-ए- हिंद को मिल जुल के बचाना होगा
वह ज़मीं जिसपे कभी उगते थे चाहत के शजर
लग गई आज उसे धर्म सेयासत की नज़र
रहनुमां आज न गीता है न कोई कुरआं
धर्म के नाम पे कुरबां हैं हजारों इन्सां
जालिमों ने तो अभी ज़ुल्म की हद ही करदी
दिनबदिन बढ़ती ही जाती है ये दहशत गर्दी
है कहीं मॉल पे हमले तो कहीं जनों पर
कैसी आफत है पड़ी आज ये इंसानों पर
यों तो अल्लाह, खुदा, बोले, या वो राम कहे
क्या ज़माने में कोई है? जो खुलेआम कहे
सबकी आंखों में वही अश्क वही सपने हैं
चाहे हिंदू हों,मुसलमां हों, सभी अपने हैं
एक इंसान जिस इन्सां से परेशां होगा
सच तो ये है के वो हिंदू न मुसलमां होगा
हम अगर साथ हों तूफां से निकल सकते हैं
ये ज़मीं क्या है ? ज़माना भी बदल सकते हैं
पर ये मुमकिन है मुहब्बत से, सियासत से नहीं
जुल्म से जुर्म से जज्बात से ताक़त से नहीं
ये जहाँ पयार से आबाद है,नफरत से नहीं
कर लो वादा ये वसी से के शरारत से नहीं
हमको बस पयार से ही पयार है, वहशत से नहीं
ये नये साल का वादा है, निभाना होगा
हर तरफ़ पयार की शम्मा को जलाना होगा.

Wasiul Haque (wasi bastavi)
J.N.U. NEW DELHI