Monday, January 5, 2009

नये साल का वादा



हर तरफ़ पयार की शम्मा को जलाना होगा
मादर-ए- हिंद को मिल जुल के बचाना होगा
वह ज़मीं जिसपे कभी उगते थे चाहत के शजर
लग गई आज उसे धर्म सेयासत की नज़र
रहनुमां आज न गीता है न कोई कुरआं
धर्म के नाम पे कुरबां हैं हजारों इन्सां
जालिमों ने तो अभी ज़ुल्म की हद ही करदी
दिनबदिन बढ़ती ही जाती है ये दहशत गर्दी
है कहीं मॉल पे हमले तो कहीं जनों पर
कैसी आफत है पड़ी आज ये इंसानों पर
यों तो अल्लाह, खुदा, बोले, या वो राम कहे
क्या ज़माने में कोई है? जो खुलेआम कहे
सबकी आंखों में वही अश्क वही सपने हैं
चाहे हिंदू हों,मुसलमां हों, सभी अपने हैं
एक इंसान जिस इन्सां से परेशां होगा
सच तो ये है के वो हिंदू न मुसलमां होगा
हम अगर साथ हों तूफां से निकल सकते हैं
ये ज़मीं क्या है ? ज़माना भी बदल सकते हैं
पर ये मुमकिन है मुहब्बत से, सियासत से नहीं
जुल्म से जुर्म से जज्बात से ताक़त से नहीं
ये जहाँ पयार से आबाद है,नफरत से नहीं
कर लो वादा ये वसी से के शरारत से नहीं
हमको बस पयार से ही पयार है, वहशत से नहीं
ये नये साल का वादा है, निभाना होगा
हर तरफ़ पयार की शम्मा को जलाना होगा.

Wasiul Haque (wasi bastavi)
J.N.U. NEW DELHI


1 comment:

  1. ऐ वाशी भाई,इन्ही संदेशों को मादरेवतन में फैलाना है,इस जगह पर जन-जन को जगाना है.....कोई देश के ख़िलाफ़ सोच ही ना सके.........ऐसी आग हर दिल में लगानी है..........

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