Monday, January 5, 2009

Sabarmati Hostel, JNU (farewell Poem)

साबरमती Hostel of J.N.U
के
बहुत ही सीनियर गार्ड
रना
जी की विदाई पर एक नज़्म-
"
राणा जी की याद में"


हर इक दिन कुछ घड़ी, कुछ पल हम उनके साथ रहते हैं
मुहब्बत से उन्हें हम लोग तो राणा जी कहते हैं
अगर देखें वह औरों से कई वजहों से बेहतर हैं
वोह मरदे नातवां साबरमती के गेट कीपर हैं
बस उन की इक हँसी पर सारे लड़के हंसने लगते हैं
कभी भी मूड में गपशप अगर वो करने लगते हैं
कभी वो शौक़ से किस्से जवानी के सुनाते हैं
बहुत ही फख्र से ख़ुद को वो इक फौजी बताते हैं
मेरा नेपाल घर है गर कोई पूछे तो कहते हैं
वह अक्सर बात में सा की जगह पर शा ही कहते हैं
जब उनके हाथ में देखा था तम्बाकू तो ऐ यारब
वो शरमा के ये बोले मुझसे और कहिये वशी शाहब
ज़रा शा आप भी ले लें अगर जो शौक़ रखते हैं
मुहब्बत से उन्हें हम लोग तो राणा जी कहते हैं
था उनका काम मजलूमों को हरदम हौसला देना
सभी लोगों को गर मुमकिन हो अच्छा मशवरा देना
खेलाफ़-ऐ-अक्ल बातों पे उन्हें गुस्सा भी आता है
ज़रा रह रह के यूँ पारा भी उनका चढ़ता जाता है
कोई हाकर अगर इक बार कहने से नहीं माना
तो वो गुस्से में कहते सुन लो मेरा नाम है राणा
कभी देखा अगर कुत्ता तो वो गुस्से में ये बोले
तेरी ऐशी की तैशी,रुक ज़रा..अब भी नहीं डोले !
सुबह हो शाम हो वोह जब तलक डयूटी पे रहते हैं
सभी कुत्ते हमेशा उनकी परछाईं से डरते हैं
खड़े बस दूर से ही दुम हिलाते तकते रहते हैं
मुहब्बत से उन्हें हम लोग तो राणा जी कहते हैं
हुआ इक हादसा तो सबने पूछा के वजह क्या है
वो बोले और क्या सुनियेगा अब बाकी बचा क्या है
लड़ाई रोकने को मैं इधर मौके पे जा पहुँचा
तो इक दूजा उधर से लड़कयों की विंग में आ पहुँचा
वोह घुस कर रूम में इक बेड के नीचे छुप गया ऐसे
के जैसे सांप हो बोरी के नीचे घुस गया जैसे
कोई बनता है शैदाई कोई बनता है दिलवाला
इन्हीं लोगों ने तो जीना मेरा मुश्किल है कर डाला
हजारों लोग आते हैं कई काले कई गोरे
बहुत ही तंग करते हैं ये हमको नौजवां छोरे
खुदा जाने ये पढ़ते भी हैं या बस यूँ ही फिरते हैं
मुहब्बत से उन्हें हम लोग तो राणा जी कहते हैं

Wasi Bastavi

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