Thursday, January 8, 2009

my life in my poetry

अपने एहसास के शीशे में संवर लेता हूँ
मैंने तो ख़ुद को ही आईना बना रक्खा है .

मैं इक खुद्दार था मुट्ठी को अपनी बंद ही रक्खा
नहीं तो बारहा रिशवत मेरी मुट्ठी में आई थी.

मेरा दावा है मुझ से ए हवा तू हार जाऐगी
मैं यादों का दिया हूँ जलते रहना मेरी आदत है .


जुनूं में गिर के बिखरना ये मेरी फितरत है
मुझे ये ढंग सिमटने का यूं न सिखलाओ
चमक रहा हूँ तो उसकी वजह भी है मालूम
मैं आइना हूँ मुझे आइना न दिखलाओ.


मंजिल अभी करीब दिखी दिख के खो गई
हाँ जेएनयू में दिल का सफर एक कशमकश
आशिक की हसरतों में डुबी दिल की धड़कनें
माशूक की वो तिरछी नज़र एक कशमकश.

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